Abstract
जाट प्रतिरोध और मुगल साम्राज्य का पतन: सामरिक भूगोल एवं सैन्य रणनीति का विश्लेषण
Author : डॉ राहुल कुमार
Abstract
जाट प्रतिरोध मुगलकालीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो न केवल एक सामाजिक-आर्थिक विद्रोह था, बल्कि एक सामरिक और राजनीतिक चुनौती भी थी। इस विद्रोह ने साम्राज्य की परिधीय सत्ता को कमजोर किया और उत्तर भारत के राजनीतिक पुनर्गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जाटों ने दिल्ली-आगरा-अजमेर त्रिकोण जैसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में विद्रोह किया, जहाँ से साम्राज्य की प्रशासनिक, धार्मिक और सैन्य गतिविधियाँ नियंत्रित होती थीं। जाटों ने गुरिल्ला युद्ध-शैली, किलेबंदी और स्थानीय भूगोल के ज्ञान का उपयोग कर मुगल शक्ति को गहरा आघात पहुँचाया। इससे मुगल साम्राज्य की कमजोरी उजागर हुई और अन्य समूहों को भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। जाट प्रतिरोध ने उत्तर भारत के राजनीतिक पुनर्गठन और क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन को प्रभावित किया और भविष्य के शक्ति-संतुलन की नींव रखी। जाट प्रतिरोध का सामरिक महत्त्व इसके धार्मिक, आर्थिक और संस्थागत दृष्टिकोणों के साथ-साथ भी देखा जा सकता है। इस विद्रोह ने मुगल साम्राज्य की शक्ति और स्थिरता को चुनौती दी और उत्तर भारत की राजनीतिक दिशा को बदल दिया। जाट प्रतिरोध की सफलता ने अन्य समूहों को भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया और उत्तर भारत के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की।
