Abstract

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स्मृतियों में उल्लिखित न्याय व्यवस्था

Author : विवेक कुमार शर्मा

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संसार का कोई भी समाज, किसी भी विशेष कालखण्ड में पूरी तरह अपराध मुक्त रहने का दाबा नहीं कर सकता। भारतीय समाज के सम्बन्ध में भी यह बात पूरी तरह सत्य है। प्राचीन भारतीय समाज में अपराधों की चुनौती और दण्ड व्यवस्था के विकास का एक तार्किक विकासक्रम दिखाई देता है। समाज की आवश्यकताओं और बाध्यताओं ने एक प्रकार्यात्मक न्याय व्यवस्था को जन्म दिया। इस व्यवस्था में खामियाँ और खूबियाँ दोनों थीं, लेकिन तत्कालीन समाज को संगठित रखने का कार्य इसने अवश्य सफलतापूर्वक सम्पन्न किया। इस शोध आलेख में प्राचीन भारत में अपराध अवधारणा के विकास और न्यायिक प्रक्रिया की स्मृति ग्रन्थों के विवरण के आधार पर अध्ययन किया गया है।