Abstract

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लोक जीवन के महाकाव्य पद्मावत में स्त्रियों की भूमिका

Author : डॉ. वर्षा रानी

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लोक भाषा अवधी में रचित मध्यकालीन हिंदी साहित्य के लोक प्रसिद्ध प्रबंध काव्य पद्मावत और रामचरितमानस का महत्व कालातीत है । इन ग्रंथों ने न केवल पूर्व मध्यकाल या भक्ति काल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग बनाया अपितु जन भाषा में रचित साहित्य के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व का भी प्रतिपादन किया। हिंदी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण धारा की प्रेमाश्रयी शाखा के प्रतिनिधि सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने पद्मावत नामक प्रबंध काव्य की रचना तत्कालीन साहित्यिक भाषा ब्रजभाषा से इतर जन भाषा अवधी में करने का अदम्य साहसिक कार्य किया। पद्मावत की भाषा के साथ-साथ इसकी भाव भूमि भी लोक जीवन से संपृक्त है। पद्मावत में अवधी के लोक प्रचलित शब्दों के प्रयोग के संदर्भ में डॉ. परमानंद ने लिखा है “लोक जीवन के ठेठ शब्दों की बड़ी पूंजी जायसी के पास है।” प्रस्तुत शोध आलेख का उद्देश्य जायसी के सुप्रसिद्ध प्रबंधकाव्य पद्मावत में अभिव्यक्त लोक जीवन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना और उसमें स्त्री चेतना के स्वर की खोज करना है। इस अध्ययन हेतु मुख्य रूप से पद्मावत के मानसरोदक खण्ड और नागमती वियोग खण्ड को आधार बनाया गया है।