Abstract

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स्वातंत्र्योत्तर संदर्भ और नागार्जुन का काव्य

Author : डॉ. आलोक कुमार तिवारी

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स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में नागार्जुन का काव्य एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक चेतना का सशक्त दस्तावेज है। यह शोधपत्र नागार्जुन की कविता को स्वातंत्र्योत्तर भारत की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के संदर्भ में विश्लेषित करता है। नागार्जुन ने अपने काव्य के माध्यम से आम जनमानस की पीड़ा, संघर्ष और आकांक्षाओं को स्वर प्रदान किया। उनके काव्य में विद्रोह की भावना, सत्ता विरोध, दलित एवं वंचित वर्गों के प्रति सहानुभूति तथा यथार्थ का प्रामाणिक चित्रण विशेष रूप से दृष्टिगोचर होता है। यह अध्ययन विशेष रूप से उनकी कविताओं में प्रयुक्त भाषा-शैली, प्रतीकों, बिम्बों और विषयवस्तु की गहन पड़ताल करता है, साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि किस प्रकार नागार्जुन ने काव्य को जनता के संघर्ष का माध्यम बनाया। उनका काव्य न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि वह सामाजिक परिवर्तन की चेतना से भी ओतप्रोत है। इस शोध के माध्यम से यह निष्कर्ष निकलता है कि नागार्जुन का काव्य स्वातंत्र्योत्तर भारत की वैचारिक उथल-पुथल को व्यक्त करने में सफल रहा है और आज भी उसकी प्रासंगिकता बनी हुई है।